केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए)
सभी तकनीकी और आर्थिक मामलों में, विद्युत मंत्रालय को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। यद्यपि, प्राधिकरण (सीईए) पूर्ववर्ती विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम, 1948, जिसे इसे इसके पश्चात् विद्युत अधिनियम, 2003, जहां इसी प्रकार के प्रावधान मौजूद हैं, द्वारा बदल दिया गया है, के अंतर्गत गठित एक वैधानिक निकाय है, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का कार्यालय विद्युत मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण कार्यक्रमों के तकनीकी समन्वय और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी है और इसे कई वैधानिक कार्य भी सौंपे गए हैं। इसकी अध्यक्षता अध्यक्ष द्वारा की जाती है जोकि भारत सरकार का पदेन सचिव भी होता है और इसमें भारत सरकार के पदेन अपर सचिव के रैंक के सीईए के छ: (6) पूर्णकालिक सदस्य भी शामिल हैं, इन्हें सदस्य (थर्मल), सदस्य (हाइड्रो), सदस्य (आर्थिक एवं वाणिज्यिक), सदस्य (विद्युत प्रणाली), सदस्य (आयोजना) और सदस्य (ग्रिड प्रचालन एवं वितरण) के रूप में पदनामित किया गया है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार राष्ट्रीय विद्युत योजना तैयार करेगा और पांच वर्षों में एक बार इस योजना को अधिसूचित करेगा। जल विद्युत उत्पादन स्टेशन स्थापित करने का इरादा रखने वाली किसी उत्पादन कंपनी के लिए केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की सहमति की आवश्यकता भी होती है।
विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा, 73 में प्राधिकरण को उन कार्यों और उत्तरदायित्वों के लिए सशक्त बनाया गया है जो केंद्र सरकार निर्धारित अथवा निर्देशित करे और विशेष रूप से निम्नलिखित कार्यों के लिए:
क). राष्ट्रीय विद्युत नीति से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना, विद्युत प्रणाली के विकास के लिए लघु अवधि और परिदृश्य योजना तैयार करना और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हितों की सुरक्षा के लिए संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु आयोजना एजेंसियों के कार्यों को समन्वित करना और सभी उपभोक्ताओं के लिए विश्वसनीय और वहनीय विद्युत उपलब्ध करवाना।
ख). वैद्युत संयंत्रों, विद्युत लाइनों और ग्रिड से संबद्धता के लिए तकनीकी मानक विनिर्दिष्ट करना।
ग). विद्युत संयंत्रों और विद्युत लाइनों के निर्माण, प्रचालन एवं अनुरक्षण के लिए सुरक्षा अपेक्षाओं को विनिर्दिष्ट करना।
घ). पारेषण लाइनों के प्रचालन एवं अनुरक्षण के लिए ग्रिड मानकों को विनिर्दिष्ट करना।
ड़). विद्युत के पारेषण एवं आपूर्ति हेतु मीटर लगाने के लिए शर्तें विनिर्दिष्ट करना।
च). विद्युत प्रणाली के सुधार एवं विकास के लिए स्कीमों और परियोजनाओं को समय से पूरा करने में प्रोत्साहन एवं सहायता देना।
छ). विद्युत उद्योग में संलग्न व्यक्तियों की दक्षता को बढ़ाने के लिए उपायों को प्रोत्साहित करना।
ज). किसी ऐसे मामले, जिस पर सलाह मांगी गई है, पर केंद्र सरकार को सलाह देना अथवा किसी भी मामले पर सरकार को सिफारिश करना, यदि प्राधिकरण का यह विचार हो कि इस सिफारिश से विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यवसाय, वितरण एवं उपयोग को सुधारने में मदद मिलेगी।
झ). विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यवसाय, वितरण एवं उपयोग से संबंधित आंकड़े एकत्रित एवं रिकार्ड करना और लागत, दक्षता, प्रतियोगिता और इसी प्रकार के मामलों से संबंधित अध्ययन करना।
ञ). इस अधिनियम के अंतर्गत सुरक्षित की गई सूचना को समय-समय पर सार्वजनिक करना और रिपोर्टों और जांचों के प्रकाशन की व्यवस्था करना।
ट). विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण एवं व्यवसाय को प्रभावित करने वाले मामलों पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
ठ). विद्युत के उतपादन अथवा पारेषण या वितरण के उद्देश्यों के लिए कोई जांच करना या करवाना।
ड). ऐसे मामलों पर राज्य सरकार, लाइसेंसियों या उत्पादन कंपनियों को सलाह देना जिससे कि वे संशोधित तरीके से और जहां आवश्यक हो, किसी अन्य विद्युत प्रणाली के स्वामित्व या नियंत्रण वाली उत्पादन कंपनी पर कोई अन्य सरकार या लाइसेंसी के समन्वय से उनके स्वामित्व अथवा नियंत्रण के अंतर्गत विद्युत प्रणाली के प्रचालन एवं अनुरक्षण में सक्षम बनेंगी।
ढ). विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण से संबंधित सभी तकनीकी मामलों पर उपयुक्त सरकार और उपयुक्त आयोग को सलाह देना; और
ण). विद्युत अधिनियम, 2003 के अंतर्गत प्रावधान किए गए इसी प्रकार के अन्य कार्यों का निर्वहन करना।
विद्युत हेतु अपीलीय अधिकरण (एपीटीईएल)
विद्युत अपीलीय अधिकरण विनियामक आयोग और निर्णायक अधिकारी के आदेशों के विरुद्ध की गई अपीलों की सुनवाई के उद्देश्य के लिए गठित एक वैधानिक निकाय है।
दिनांक 10 जून, 2003 को भारत सरकार द्वारा विद्युत अधिनियम अधिसूचित किया गया था। इस अधिनियम में विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण व्यवसाय और उपयोग तथा विद्युत उद्योग के विकास में सहायक उपाय करने, उसमें प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने, उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करने और सभी क्षेत्रों को विद्युत की आपूर्ति करने, सब्सिडियों से संबंधित पारदर्शी नीतियां सुनिश्चित करते हुए विद्युत प्रशुल्क के यौक्तिकीकरण, दक्ष और पर्यावरणीय रूप से हितकर नीतियों के प्रोत्साहन, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, विनियामक आयोगों के गठन और अपीलीय अधिकरण की स्थापना और उससे संबद्ध अथवा उसके आकस्मिक मामलों से संबंधित कानूनों को संकलित करने की अपेक्षा की गई है। यह अधिनियम जम्मू एवं कश्मीर के सिवाय भारत के सभी संघ शासित क्षेत्रों पर लागू होगा।
विद्युत अधिनियम, 2003 (2003 का केंद्रीय अधिनियम 36) (जिसे इसमें इसके पश्चात् अधिनियम के रूप में निर्दिष्ट किया गया है), संपूर्ण भारत में अधिकारिता रखने वाले अपीलीय विद्युत अधिकरण की स्थापना, 2003 के अधिनियम के अंतर्गत अधिनियम की धारा 76(i) या 82 या 83 के अंतर्गत क्रमशः निर्णायक अधिकारी या केंद्रीय विनियामक आयोग या राज्य विनियामक आयोग या संयुक्त आयोग के आदेशों के विरुद्ध की गई अपीलों या वास्तविक याचिकाओं की सुनवाई के लिए की गई है। अधिकरण को अधिनियम की धारा 121 के अंतर्गत याचिकाओं की सुनवाई करने और इसके वैधानिक कार्यों के निष्पादन के लिए सभी आयोगों को निदेश जारी करने के लिए वास्तविक अधिकारिता प्रदान की गई है। इस अधिकरण की स्थापना एसओ 478(ई) के माध्यम से अधिसूचित दिनांक 7 अप्रैल, 2014 से विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की गई है। यह अधिकरण सामान्यतया दिल्ली में कार्य करेगा।
अपीलीय अधिकरण में एक अध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य शामिल होंगे। अध्यक्ष द्वारा गठित किसी पीठ में कम से कम एक न्यायिक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य शामिल होगा।
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी)
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग पूर्ववर्ती विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 तथा विद्युत अधिनियम, 2003 (जिसने अन्य बातों के साथ-साथ ईआरसी अधिनियम, 1998 को भी रद्द कर दिया है) के अंतर्गत जारी प्रावधान के अंतर्गत गठित एक वैधानिक निकाय है। केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग के मुख्य कार्य केंद्र सरकार द्वारा स्वामित्व प्राप्त अथवा नियंत्रित उत्पादन कंपनियों के प्रशुल्क को नियंत्रित करना, केंद्र सरकार द्वारा स्वामित्व प्राप्त अथवा नियंत्रित कंपनियों के अतिरिक्त अन्य उत्पादन कंपनियों, यदि वे उत्पादन कंपनियां एक से अधिक राज्यों में विद्युत के उतपादन एवं विक्रय हेतु एक संयुक्त योजना में प्रवेश करे अथवा उनकी एक संयुक्त योजना हो, के प्रशुल्क को नियंत्रित करना, पारेषण यूटिलिटयों के प्रशुल्क सहित ऊर्जा के अंतर्राज्यीय पारेषण एवं व्यवसाय के लिए लाइसेंस प्रदान करना और राष्ट्रीय विद्युत नीति और प्रशुल्क नीति तैयार करने में केंद्र सरकार को सलाह देना है।
राज्य विद्युत विनियामक आयोग (एसईआरसी)
अंतर्राज्यीय स्तर पर प्रशुल्क के निर्धारण और लाइसेंस प्रदान करने के लिए उत्तरदायी एक वैधानिक निकाय के रूप में एसईआरसी की धारणा की परिकल्पना पूर्ववर्ती विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 में की गई थी और इसे विद्युत अधिनियम, 2003 (जिसने अन्य बातों के साथ-साथ ईआरसी अधिनियम, 1998 को रद्द कर दिया है) में जारी रखा गया है। राज्य विद्युत विनियामक आयोगों के प्रमुख उत्तरदायित्व विद्युत के उत्पादन, आपूर्ति, पारेषण एवं व्हीलिंग के लिए प्रशुल्क निर्धारित करना, राज्य के भीतर थोक, बल्क या खुदरा विक्रय, अंतर्राज्यीय पारेषण, वितरण एवं व्यवसाय के लिए लाइसेंस जारी करना, ऊर्जा के नए स्रोतों से विद्युत के सह-उत्पादन और उत्पादन को प्रोत्साहित करना आदि हैं।
केंद्रीय पारेषण यूटिलिटी (सीटीयू)
एक वैधानिक निकाय के रूप से सीटीयू की स्थापना पूर्ववर्ती भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 की धारा 27 A में की गई थी और इसे विद्युत अधिनियम, 2003 (जिसने अन्य बातों के साथ-साथ भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 को रद्द कर दिया है) में भी बनाए रखा गया है। सीटीयू के कार्य अंतर्राज्यीय पारेषण प्रणाली के माध्यम से ऊर्जा के पारेषण को शुरू करना और अन्य पारेषण यूटिलिटियों, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उत्पादन कंपनियों आदि के साथ अंतर्राज्यीय पारेषण प्रणाली से संबंधित आयोजना एवं समन्वय के सभी कार्यों का निर्वहन करना है। पावरग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड केंद्रीय पारेषण यूटिलिटी होगी।
राज्य पारेषण यूटिलिटी (एसटीयू)
एक वैधानिक निकाय के रूप में एसटीयू की स्थापना पूर्ववर्ती भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 की धारा 27 B में की गई थी और इसे विद्युत अधिनियम, 2003 (जिसने अन्य बातों के साथ-साथ भारतीय वि़द्युत अधिनियम, 1910 को भी रद्द कर दिया है) में भी बनाए रखा गया है। राज्य पारेषण यूटिलिटी के कार्य अंतर्राज्यीय पारेषण प्रणाली के माध्यम से उर्जा के पारेषण को शुरू करना और केन्द्रीय पारेषण यूटिलिटि, राज्य सरकारों, उत्पादन कम्पनियों आदि के साथ अंतर्राज्जीय परिषण प्रणाली से संबंधित आयोजना एवं समन्वय के सभी कार्यों का निर्वहन करना है ।
राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र (एनएलडीसी)
विद्युत अधिनियम 2003 में क्षेत्रीय भार प्रेषण केन्द्रों के मध्य विद्युत के इष्टतम निर्धारण और प्रेषण के लिये राष्ट्रीय भार प्रेषण केन्द्र के गठन की व्यवस्भा की गई है । एनएलडीसी का गठन एवं कार्य केन्द्र सरकार द्वारा अभी निर्धारित किये जाने हैं ।
क्षेत्रीय भार प्रेषण केन्द्र (आरएलडीसी)
विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 25 में केन्द्र सरकार में विद्युत के दक्ष, आर्थिक और एकीकृत प्रक्षेषण एवं आपूर्ति तथा विशेष रूप से विद्युत के अंतर्राज्यीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्क्षेत्रीय उत्पादन एवं पारेषण के लिये सुविधाओं के स्वेच्छिक अंतर्संबंध और समन्वय को सुगम बनाने के लिये देश का क्षेत्रीय विभाजन करने की अपेक्षा की गई है । प्रत्येक ऐसे क्षेत्र में एकीकृत विद्युत प्रणाली को सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय भार प्रेषण केन्द्र (आरएलडीसी) की परिकल्पना एक सर्वोच्च निकाय के रूप में की गई है । आरएलडीसी अन्य बातों के साथ-साथ क्षेत्र के भीतर विद्युत के प्रेषण, निगरानी, ग्रिड प्रचालन आदि के लिये उत्तरदायी है । ग्रिड स्थायित्व आदि को सुनिश्चित करने के लिये आरएलडीसी द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन लाइसेंन्सियों, उत्पादन कम्पनी, उत्पादन स्टेशन, सब-स्टेशन और विद्युत प्रणाली के प्रचालन से संबंद्ध किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाना अपेक्षित होता है ।
राज्य भार प्रेषण केन्द्र (एसएलडीसी)
आरएलडीसी जोकि क्षेत्रीय स्तर पर प्रचालनरत है, के समान राज्य में विद्युत प्रणाली के एकीकृत प्रचालनों को सुनिश्चित करने के दायित्व के साथ राज्य स्तर पर एसएलडीसी की परिकल्पना की गई है ।
शिकायत निपटारा फॉरम और लोकपाल
विद्युत अधिनियम 2003 में प्रत्येक वितरण लाइसेंसी के लिये उपभोक्ताओं की शिकायतों के निपटारे के लिये एक फॉरम की स्थापना करने की अपेक्षा की गई है । लोकपाल शिकायत फॉरम के स्तर पर शिकायतों का निपटारा न किये जाने के विरूद्ध सुनवाई और निर्णय के लिये राज्य आयोग द्वारा नियुक्त या पदनामित किया जाने वाला एक वैधानिक निकाय है ।
उर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई)
उर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) की स्थापना उर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 की धारा 3 के अनुसार एक वैधानिक निकाय के रूप में दिनांक 1 मार्च, 2002 को भारत सरकार द्वारा की गई है । उर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) का मुख्यालय द्धितीय तल, एनबीसीसी टावर, 15 भीकाजी कामा प्लेस, नई दिल्ली में स्थित है ।
उर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के प्रावधानों के अनुसरण में स्थापित की गई है । विनियामक और प्रोत्साहनजनक उपस्करों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की उर्जा दक्षता के सुधार की अगुआई हेतु उत्तरदायी है । वर्ष 2006-07 तक 3320 मेगावाट की उर्जा बचत क्षमता का अनुमान लगाया है ।
- मानकीकरण एवं लेबलीकरण 1960 मेगावाट,
- उद्योग उर्जा संरक्षण कार्यक्रम 1200 मेगावाट के कार्यान्वयन के माध्यम से पदनामित उपभोक्ता,
- मांग पक्ष प्रबंधन 160 मेगावाट ।
उर्जा दक्षता ब्यूरो का मिशन उर्जा बचत उपायों को प्रोत्साहित करने और बदले में भारतीय अर्थव्यवस्था की उर्जा तीव्रता (प्रति यूनिट उत्पाद सेवाओं के अनुसार उपभोग की गई उर्जा, पद्धति एवं प्रक्रिया) को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ उर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 की समग्र अवसंरचना के भीतर स्व विनियमन और बाजार सिद्धांतों पर बल देते हुए नीतियों और कार्यनीतियों को विकसित करना है । उर्जा दक्षता ब्यूरो ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित परियोजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं:-
- इंडियन इन्डस्ट्री प्रोग्राम फॉर एनर्जी कंजर्वेशन (आईआईपीईसी),
- उर्जा प्रबंधको का पेशवर प्रमाणीकरण और उर्जा लेखा परीक्षकों का प्रत्यायन,
- उपस्करों के लिये मैनुअल और उर्जा निष्पादन कोड का विकास,
- मानकीकरण एवं लेबलीकरण (एमएंडएल) कार्यक्रम,
- माँग पक्ष प्रबंधन,
- भवन एवं स्थापनाओं में उर्जा दक्षता,
- भवन कोड पर उर्जा संरक्षण,
- विद्यालयों में उर्जा संरक्षण जागरूकता,
- राष्ट्रीय उर्जा संरक्षण पुरस्कार ।
दामोदर घाटी निगम (डीवीसी)
डीवीसी घाटी निगम (डीवीसी) की स्थापना घाटी निगम अधिनियम द्वारा दिनांक 7 जुलाई, 1948 को की गई थी । निगम में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और दो अंश कालिक सदस्य हैं । अंशकालिक सदस्य बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
प्रथम बहुउद्देशीय एकीकृत नदी घाटी परियोजना के रूप में अस्तित्व में आया ।
पश्चिम बंगाल और झारखंड राज्यों में 24,235 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक विस्तार करते हुए दामोदर घाटी क्षेत्र के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिये प्रतिबद्ध हैं ।
निगम के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:-
बाढ़ नियंत्रण ।
सिंचाई एवं औद्योगिक एवं घरेलू उपयोग के लिये जल आपूर्त्ति ।
विद्युत उर्जा का उत्पादन, पारेषण एवं वितरण ।
दामोदर घाटी में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन और भूरक्षण का नियंत्रण; और
दामोदर घाटी और उसके प्रचालन के क्षेत्र में लोगों के औद्योगिक, आर्थिक और सामान्य बेहतरी को प्रोत्साहन ।
डीवीसी का अधिकार क्षेत्र 24,235 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक विस्तारित है जिसमें बिहार के सात जिले और पश्चिम बंगाल के पाँच जिले शामिल हैं । निगम ने अब तक तिलैया, कोनार, मैथन और पंचेत में चार बहुउद्देशीय बाँधों और दुर्गापुर में दामोदर नदी पर बैराज सहित एक सिंचाई प्रणाली और 2459 किलोमीटर की कैनाल प्रणाली का निर्माण किया है । डीवीसी ने 2535 मेगावाट की क्षमता को जोड़ते हुए पाँच थर्मल विद्युत स्टेशनों का निर्माण भी किया है ।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी)
भाखड़ा ब्यास प्रबन्ध बोर्ड (बीबीएमबी) का गठन भाखड़ा नंगल परियोजना के प्रशासन, अनुरक्षण तथा संचालन हेतु पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 79 के अंतर्गत 01 अक्तूबर, 1967 को किया गया था। अधिनियम 1966 की धारा 80 के अनुसार ब्यास परियोजना का काम पूरा होने पर, भारत सरकार द्वारा ब्यास निर्माण बोर्ड (बीसीबी) से बीएमबी को स्थानांतरित कर दिया गया और दिनांक 15.05.1976 को भाखड़ा प्रबन्ध बोर्ड (बीएमबी) का नाम बदलकर भाखड़ा ब्यास प्रबन्ध
बोर्ड (बीबीएमबी) कर दिया गया। बीबीएमबी बीएसएल वाटर कंडक्टर प्रणाली के माध्यम से पंडोह में डायवर्ट किए गए पानी के अतिरिक्त भाखड़ा और पोंग में एकत्रित पानी के दोहन के लिए बनाई गई सुविधाओं का प्रबंधन करता है। इसे लाभार्थी राज्यों को उनके देय/हकदार शेयरों के अनुसार पानी और बिजली पहुंचाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। बोर्ड भाखड़ा नंगल परियोजना, ब्यास परियोजना इकाई-I और इकाई-II सहित विद्युत घरों और पारेषण लाइनों तथा ग्रिड उप केंद्रों के नेटवर्क के प्रशासन, अनुरक्षण और संचालन कार्यों के प्रति उत्तरदायी है। बीबीएमबी को हाइड्रो और सिंचाई परियोजनाओं में इंजीनियरिंग और संबंधित तकनीकी और परामर्शी सेवाएं प्रदान करने के अतिरिक्त कार्य भी सौंपे गए हैं। बीबीएमबी की कुल अधिष्ठापित क्षमता 2940.10 मेगावाट है।
गोवा और संघशासित क्षेत्रों के लिये संयुक्त विद्युत विनियामक आयोग ।
मणिपुर और मिजोरम के लिये संयुक्त विद्युत विनियामक आयोग