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अवलोकन

उत्पादन स्टेशनों और वितरण प्रणाली के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के माध्यम से उपभोक्ताओं को विद्युत की आपूर्ति में पारेषण प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में कोयला, जलविद्युत और नवीकरणीय जैसे ऊर्जा संसाधन असमान रूप से वितरित किए जाते हैं। कोयला भंडार मुख्य रूप से देश के मध्य और पूर्वी भाग में उपलब्ध हैं, जबकि जल ऊर्जा संसाधन मुख्य रूप से उत्तरी और पूर्वोत्तर के भागों में हिमालय की सीमा में उपलब्ध हैं। पवन और सौर क्षमता जैसे नवीकरणीय संसाधन भी मुख्य रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और लद्दाख आदि राज्यों में केंद्रित हैं। देश के प्रमुख भार केंद्र उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों सहित मध्य भाग में स्थित हैं। संसाधनों के इस असमान वितरण के कारण अधिशेष से कम विद्युत उत्पादन आंचलों /क्षेत्रों में विद्युत के निर्बाध अंतरण के लिए अंतर-क्षेत्रीय कॉरिडोरों की स्थापना सहित सुदृढ़ पारेषण प्रणाली का विकास आवश्यक हो गया है। इस प्रक्रिया में, यह पूरे देश में फैले विभिन्न उपभोक्ताओं तक देश में कहीं से भी विद्युत उत्पादन तक पहुंच को सक्षम बनाता है।

अंतरा- राज्य और अंतर-राज्य पारेषण प्रणाली के माध्यम से उत्पादन स्टेशनों से लोड केन्द्रों तक विद्युत की निकासी के लिए पिछले कुछ वर्षों में पारेषण प्रणाली का विस्तार किया गया है।क्षेत्रीय ग्रिडों का प्रगतिशील एकीकरण वर्ष 1992 में शुरू हुआ, और 31 दिसंबर 2013 को, 765केवी रायचूर-सोलापुर ट्रांसमिशन लाइन से शेष भारतीय ग्रिड के साथ दक्षिणी क्षेत्र ग्रिड के अंतरसंयोजित सिंक्रोनस से हमारे देश ने 'वन नेशन'-'वन ग्रिड'-'वन फ्रीक्वेंसी' हासिल की। तथापि, पारेषण के अधिक व्यस्त होने के कारण बाजार प्रचालन में बाधाएं आती थीं, जिसके परिणामस्वरूप बाजार में विभाजन और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग बाजार मूल्य थे। वर्ष 2013-14 के दौरान, पावर एक्सचेंजों के माध्यम से होने वाली विद्युत का लगभग 16% पारेषण कंजेशन के कारण बाधित होता था। इसके अलावा, कार्यनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लद्दाख क्षेत्र राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड से जुड़ा नहीं था।

वर्तमान सरकार ने वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद, अधिक व्यस्त मुक्त पारेषण नेटवर्क पर जोर दिया है, ताकि अधिशेष क्षेत्र से कम विद्युत वाले क्षेत्र में विद्युत के प्रवाह में कोई बाधा न हो। तदनुसार, निम्नलिखित पारेषण लाइनों और अंतरा-क्षेत्रीय क्षमता को जोड़कर देश में पारेषण प्रणाली को लगातार सुदृढ़ीकरण किया गया है:

 

पारेषण लाइन में अभिवृद्धि (सीकेएम)

परिवर्तन क्षमता में अभिवृद्धि (एमवीए)

वित्तीय वर्ष 2014-15

22,101

65,554

वित्तीय वर्ष 2015-16

28,114

62,849

वित्तीय वर्ष 2016-17

26,300

81,816

वित्तीय वर्ष 2017-18

23,119

86,193

वित्तीय वर्ष 2018-10

22,437

72,705

वित्तीय वर्ष 2019-20

11,664

68,230

वित्तीय वर्ष 2020-21

16,750

57,575

वित्तीय वर्ष 2021-22

14,895

78,982

वित्त वर्ष 2023-24

14,203

70,728

वित्तीय वर्ष 2024-25 8,830 86,433
वित्तीय वर्ष 2025-26 (अप्रैल 2024 तक की स्थिति के अनुसार) 358 13,440

कुल

2,03,396

8,20,407

दिनांक 30.04.2025 तक की स्थिति के अनुसार देश के पारेषण नेटवर्क में लगभग 4,94,732 सीकेएम पारेषण लाइनें और 13,50,953 एमवीए रूपांतरण क्षमता शामिल है। इसके अलावा, वर्ष 2014 के बाद से हमारी अंतर-क्षेत्रीय क्षमता 224% बढ़कर 1,18,740 मेगावाट हो गई है।

उपरोक्त पारेषण क्षमता वृद्धि से देश में विद्युत क्षेत्र के विकास में लाभ हुआ है। उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:-

  1. पूर्व में, वर्ष 2014 में अनुभव किया गया, पारेषण कंजेशन के साथ-साथ बाजार विभाजन अब कम हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप विद्युत बाजार में एकल मूल्य की खोज हुई है। विद्युत की मात्रा जिसे पावर एक्सचेंजों में अप्रतिबंधित स्पष्ट मात्रा के प्रतिशत के रूप में मंजूरी नहीं दी जा सकती है, यह वर्ष 2013-14 में 16% की तुलना में वर्ष 2020-21 में घटकर केवल 0.06% रह गई है।
  2. लद्दाख के उच्च ऊंचाई वाले सीमा क्षेत्र जनवरी, 2019 में 220 केवी श्रीनगर-लेह लाइन के चालू होने के साथ राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड से जुड़ गए है। इससे लद्दाख के लोगों को राष्ट्रीय ग्रिड से 24x7 गुणवत्ता वाली विद्युत प्राप्त करने में मदद मिली।
  3. दो केंद्रीय क्षेत्र की स्कीमों नामत: पूर्वोत्तर क्षेत्रीय विद्युत प्रणाली सुधार परियोजना (एनईआरपीएसआईपी) और अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में पारेषण और वितरण को सुदृढ़ीकरण करने के लिए व्यापक योजना का कार्यान्वयन करके सिक्किम सहित हमारे पूर्वोत्तर राज्यों के पारेषण एवं वितरण अवसंरचना को सुदृढ़ किया गया है। इन स्कीमों के कार्यान्वयन से पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य विद्युत ग्रिड की विश्वसनीयता में सुधार होगा और अंतिम उपभोक्ताओं को ग्रिड से 24x7 विद्युत प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।
  4. पारेषण प्रणाली नवीकरणीय समृद्ध क्षेत्रों में ग्रिड का विस्तार करके और ग्रिड से जुड़ने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाकर हमारे देश के ऊर्जा पारगमन में एक उत्प्रेरक भूमिका निभा रही है।निरंतर पारेषण क्षमता अभिवृद्धि से वर्ष 2014-15 में 35.52 गीगावाट से तीन गुना बढ़कर वर्ष 2021-22 में 104.88 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा (जल विद्युत को छोड़कर) वृद्धि होने में मदद मिली है।
  5. इस विशाल पारेषण क्षमता से विद्युत अधिशेष अंचलों/क्षेत्रों से विद्युत की कमी वाले अंचलों /क्षेत्रों में विद्युत के निर्बाध अंतरण की सुविधा मिली है और इस प्रकार उत्पादन संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के साथ-साथ बिना किसी पारेषण बाधाओं के अंतिम उपभोक्ताओं की मांगों को पूरा किया है। अधिकतम विद्युत मांग और ऊर्जा कमी वर्ष 2013-14 में 4% की तुलना में वर्ष 2020-21 में घटकर 0.4% हो गई है।

 

Page Updated On: 14/05/2025
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अंतिम अद्यतन : 21 May 2025