पारेषण क्षेत्र में निजी भागीदारी
भारत में विद्युत उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा का उन्नयन विद्युत अधिनियम, 2003 का मुख्य उद्देश्य है। विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 63 के तहत प्रावधानों और विद्युत मंत्रालय द्वारा 06 जनवरी, 2006 को जारी प्रशुल्क नीति के अनुसार "पारेषण परियोजनाओं के विकास में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश" और "पारेषण सेवाओं के लिए प्रशुल्क आधारित प्रतिस्पर्द्धी बोली दिशा-निर्देश" जारी किए। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य पारेषण सेवाओं में व्यापक भागीदारी के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा को सुविधाजनक बनाने और प्रशुल्क आधारित प्रतिस्पर्द्धी बोली की प्रक्रिया के माध्यम से प्रशुल्क निर्धारण के लिए पारदर्शी प्रक्रिया निर्धारित करना है।
दिशा-निर्देशों में परिकल्पना के अनुसार, विद्युत मंत्रालय ने प्रतिस्पर्द्धी बोली और प्रतिस्पर्द्धी बोली की प्रक्रिया को देखने के माध्यम से अंतर-राज्यीय पारेषण परियोजनाओं का विकास करने के लिए चिन्हित करने के वास्ते पारेषण संबंधी अधिकार-प्राप्त समिति गठित की है। विद्युत मंत्रालय ने मानक बोली दस्तावेज (एसबीडी) अर्थात अर्हता हेतु अनुरोध (आरएफक्यू), प्रस्ताव हेतु अनुरोध (आरएफपी), पारेषण सेवा करार (टीएसए) और शेयर क्रय करार (एसपीए) भी जारी किए। दिशा-निर्देशों में प्रदत्त अनुसार, विद्युत मंत्रालय ने बोली प्रक्रिया करने के लिए बोली प्रक्रिया समन्वयक (बीपीसी) के रूप में पीएफसी कंसल्टिंग लि. (पीएफसीसीएल) और आरईसी पारेषण परियोजना कंपनी लि. (आरईसीटीपीसीएल) को नियुक्त किया है।
जहां तक अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली का संबंध है, आज की तारीख तक 37 परियोजनाएं प्रशुल्क आधारित प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से अवार्ड की जा चुकी हैं। इनमें से 13 परियोजनाएं पहले ही चालू हो चुकी हैं। 20 परियोजनाएं विभिन्न पारेषण सेवा प्रदाताओं द्वारा कार्यान्वयनाधीन हैं। शेष 4 परियोजनाएं, 1 परियोजना सीईआरसी द्वारा निरस्त कर दी गई, टीएसपी में बंदी के लिए 1 परियोजना का अनुरोध किया गया है और 2 परियोजनाओं का निर्माण मुकदमे के कारण शुरू नहीं हो सका। इसके अलावा, 6 परियोजनाएं, वर्तमान में बोली प्रक्रिया के अंतर्गत हैं।