प्रशिक्षण
प्रशिक्षण, एक निश्चित उद्देश्य हेतु लोगों के ज्ञान एवं कौशल को बढ़ाने के लिए एक संगठित गतिविधि है। प्रशिक्षित कार्मिक किसी भी संगठन की मूल्यवान संपत्ति होते हैं और इसकी प्रगति एवं स्थिरता के लिए जिम्मेदार होते हैं।
विद्युत अधिनियम, 2003 में यह प्रावधान है कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण विद्युत उद्योगों से जुड़े कार्मिकों के कौशल को आगे बढ़ाने के उपायों को बढ़ावा देने तथा विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण एवं प्रशिक्षण को प्रभावित करने वाले मामलों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित या निर्देशित कार्यों एवं कर्तव्यों का पालन करेगा।
- विद्युत क्षेत्र के लिए एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण नीति तैयार की गई है। नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- सभी संगठनों को अपने सभी कार्मिकों के लिए वर्ष में एक सप्ताह के न्यूनतम प्रशिक्षण को सुनिश्चित करने हेतु एक औपचारिक प्रशिक्षण नीति अपनानी होगी।
- प्रत्येक विद्युत यूटिलिटी द्वारा आवधिक प्रशिक्षण आवश्यकताओं के विश्लेषण के आधार पर एक व्यापक प्रशिक्षण योजना तैयार करनी चाहिए।
- किसी भी संगठन को अपने वेतन बजट का न्यूनतम 1.5% प्रशिक्षण के लिए आबंटित करना चाहिए। इसकी शुरुआत के साथ इसे आंशिक रूप से 5% तक बढ़ाना चाहिए।
- मंत्रालय एवं अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के अंतर्गत विभिन्न संगठनों के बीच प्रशिक्षण अवसंरचना एवं बौद्धिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए नेटवर्किंग की जानी चाहिए।
- विद्युत उत्पादन से जुड़े कार्मिकों के समान ही पारेषण एवं वितरण (टी एंड डी) कार्मिकों के लिए भी बुनियादी स्तर का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- जल-विद्युत, पारेषण एवं वितरण तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा सहित प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त संरचना विकसित की जानी चाहिए।
- विद्यतु संयंत्रों के संचालन कार्मिकों के लिए उपयुक्त अंतराल पर सिमूलेटर प्रशिक्षण को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
प्रशिक्षण नीति इस बात पर बल देती है कि प्रशिक्षण पर किया गया खर्च, एक प्रकार का निवेश है, न कि व्यय। यह प्रशिक्षण नीति (एनटीपी) विद्युत क्षेत्र में सेवा में प्रवेश के समय ही सभी के लिए प्रशिक्षण की प्रतिबद्धता सहित एक एकीकृत मानव संसाधन विकास (एचआरडी) गतिविधि के रूप में प्रशिक्षण की योजना बनाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।